Thursday, December 15, 2011

एक गुलाबो को गुलाबो ने लूटा


अपने पति के द्वारा मेरा बलात्कार करवाया वो भी अपने नजरों के सामने ये कहना है पीड़िता गुलाबो देवी का। वह रो-रोकर अपनी अस्मत लूटने की व्यथा कह रही थी। हैवानियत की हद को पार करने वाली कोई और नहीं एक औरत है। मानवता को शर्मसार कर देनेवाली यह घटना है सीतामढ़ी की। जहां की गुलाबो देवी नाम की एक महिला ने अपने ससुराल वालों से इंसाफ की चाह में वहां की जिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष किरण गुप्ता से सुरक्षा और बिखरते वैवाहिक जीवन को बचाने की गुहार लगाने पहुंची क्योंकि पुलिस थाने में जब उसने शिकायत दर्ज करवायी तो पुलिस ने कहा तुम किरण गुप्ता के पास जाओ वो तुम्हारी मदद करेगी। पीड़िता जदयू नैत्री के पास जाती है शुरू-शुरू में उसे इंसाफ दिलाने की दलिलें देती हुई उसके पति से फोन पर बात भी कराती है। इसी बहाने अपने घर के सारे काम भी कराती है। यूहीं गुलाबो कई बार किरण गुप्ता के घर जाती रहती है। पीड़िता के अनुसार जब वह किरण गुप्ता के घर जाती उसके यहां लोगों की भीड़ लगी रहती। प्राप्त जानकारी के अनुसार गुलाबो देवी के ससुराल वाले उसके साथ खूब मारपीट किया करते थे और उसका गर्भपात भी करवाया दिया था। कुछ दिन से पति को भी उससे मिलने नहीं दे रहे थे। इसी से तंग आकर गुलाबो ने मदद की गुहार नेत्री किरण गुप्ता से मदद की गुहार लगायी लेकिन बुधवार को समय ने उसके साथ एक और खेल खेला, उसे क्या पता था कि जिससे मदद की गुहार लगाने गयी है वही उसके इज्जत को तार-तार कर देंगे। जब वह घर में काम कर रही थी उसी समय किरण गुप्ता का पति आ जाता है किरण गुप्ता अपने पति को घर के खिड़की-दरवाजे बंद करने को कहती है और गुलाबो के हाथ-पैर बांधकर अपने पति से बलात्कार करवाया। यह पूरा वाक्या एक औरत के प्रति घिनौनी वारदात को अंजाम देने जैसा है। हमारे समाज में ऐसी लाखों गुलाबो हैं जो अपने ही मां-बहन के द्वारा बाजार में बेरहमी से बेची जा रही है। और सारे कानून मूकदर्शक बनकर देख रही है। मानवता के हत्यारे खुला सांड़ की तरह घुम रहे हैं लेकिन, हर कोई गुलाबो नहीं हो सकती जो अपने ही चिरहरण की कहानी बताने और इंसाफ पाने की हिम्मत रखती है। यह घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है जैसे-जैसे परदा उठेगा कई गड़े मुर्दे बाहर आते जाएंगे और औरत के प्रति हैवानियत की सच्चाई सबके सामने आएगी। यह ज्यादा अहमियत नहीं रखता है कि हैवानित की हद पार वाली सत्ता दल की नेत्री है बल्कि यह अहमियत रखता है वो एक औरत है।

Saturday, October 15, 2011

बस सह रही है और इज्ज़त ढो रही

कोई कैसे सहता है इतना दर्द। केवल अपने माता-पिता की इज्ज़त के लिए। औरतो के किस्मत की ऐ कैसी विद्बंवना है। जिस परिवार के लिए अपनी इच्छाए मारकर आतीं है। वहां उसे जिल्लत की जिन्दगी मिलती है। मै ऐ नहीं कहती सभी औरतो के साथ के साथ होता है। लेकिन भारत जैसे देश में ऐसा होते देख दिल दहल जाता है। यहा स्त्री को तो देवी माना जाता जाता है। फिर ऐसा क्यों है। मेरे घर के एक पिछले दस सालो से अपने पागल पति से रोज़ पिटती है।
केवल इस डर से की यहाँ से वह कहाँ जाएगी। एक तो गरीबी , उसपर उसका सुन्दर होना ही जी का जंजाल है। देखते- देखते दस साल बीत गए है तिन बच्चो की माँ बन गई है। मगर अह कोई नहीं जनता जानवरों की तरह पिट-पिट कर उसके शारीर की क्या स्थिति है। बस सह रही है और इज्ज़त ढो रही

Saturday, March 5, 2011

साहित्यिक बातों को कितनी जगह

अखबार के पते पर आने वाले पत्रों में कविता, कहानी लेख की संख्या अन्य प्रकार के पत्रों की संख्या से मुकाबले दोगुनी या तीगुनी होती है। कविता कहानी और लेख को रोज इकट्ठा किया जाए तो कोई भी अखबार महीने में एक से दो पुस्तकें जरूर प्रकाशित कर सकता है। अखबारों के व्यावसायकि होने के कारण खबरें पहले से ही संकुचित हो चुकी है इस परिस्थिति कविता, लेख और कहानियां कहां से सांस ले पायेगी। इस देश ने पूरी दुनियां को एक से बढ़कर एक साहित्कार, कथाकार दिये हैं। लेकिन दुख की बात है इस देश के एक प्रतिष्ठित समाजपत्र ने लोकल फीचर डेस्क को खत्म कर दिया है। साहित्य सदा से हमारे समाज का आईना रहा है। इन्हीं कविता, कहानी और नारों के दम पर हमारे महापुरुषों ने अंग्रेजों के नाक में दम किया था। लेकिन आज दिनों-दिन जिसप्रकार महंगाई बढ़ती जा रही है बिना पैसे के एक कदम भी बढ़ना जहां मुश्किल है वहीं कम पैसे में कहानी , कविता और लेख कैसे सांस ले पायेगी। यह बात सच है कि साहित्य के प्रति आज भी लोगों में वही रुचि है जो पहले हुआ करती थी। इस कारण लोगों में इन अखबारों में इनका डिमांड भी अधिक होता है। लेकिन क्या केवल अखबार बिकने से अखबार मालिक अपना व्यवसाय चला पायेंगे। आज एक अच्छे पत्रकार का वेतन 25-30 हजार है ऐसे में अखबार इन साहित्यिक बातों को कितना जगह दे पायेगा। ये आप बेहतर सोच सकते हैं। जो व्यक्ति कविता, लेख और पुस्तक समीक्षा करके अपनी जेब खर्च निकालते हैं।

Saturday, February 12, 2011

प्रवृत्तियां


वाह रे मनुष्य वाह रे तेरी प्रवृत्तियां
दुख में भी खुश होकर जीना चाहता है।
मृत्यु की सईयां पर लेटकर,
जीवन का एक क्षण जीना चाहता है।
हर पल लड़ता है अपने दुखों से,
फिर भी हंसकर सबको दिखाना चाहता है।
वाह रे मनुष्य, वाह रे तेरी प्रवृत्तियां
कर्म की कमी नहीं,
पर बैठकर खाने का आनंद उठाना चाहता है।
चाहे धन कितना अर्जित कर ले,
पर धन का लोभ नहीं छोड़ना चाहता है।
अपनो ंकी कमी नहीं,
फिर भी दूसरों में अपनों को ढूढ़ना चाहता है।
वाह रे मनुष्य, वाह रे तेरी प्रवृत्तियां
ढूंढों तो सुन्दरता की कमी नहीं,
पर सुन्दर बनने का ढोंग रचाना चाहता है।
राम के नाम को गाली देकर,
राम नाम जपना चाहता है।
बेटा-बेटी एक समान है
पर बेटा से अपना अंतिम संस्कार चाहता है।
वाह रे मनुष्य, वाह रे प्रवृत्तियां

भूल

कभी जिंदगी कभी किताब है,
इस भूल का अलग ही शबाब है।
चैन लेकर बेचैनी देती है,
कभी अनछुआ एहसास बनकर मन को हंसाती है।
जागे-जागे आंखों मेंअनदेखा ख्याव है
कभी जिन्दगी कभी किताब है,
इस भूल का अलग ही शबाब है।
जितना पवित्र, उतना ही निर्मल
इसका तो हर रूप निराला है।
रातों को सितारे बनकर मन को जगमगाति है
दिन में सच बनकर सामने आती है।
बिन पीये जो नशा ला दे ये ऐसा शराब है।
कभी जिन्दगी, कभी किताब है।
इस भूल का अलग ही शबाब है।
फूलों से नाजूक रिश्ता है यह
बिन छुये ही टूट जाये
कभी जन्म-जन्म का बंधन
बनकर जीवन भर साथ निभाये
प्रेम पर मर-मिटने को हर पल बेताब है।
कभी जिन्दगी, कभी किताब है,
इस भूल का अलग ही शबाब है।

Thursday, February 10, 2011

ये कैसी पूजा

पल-पल न माने है टिंकू जिया इश्क का मंजन घिसे है पिया। इस गानों ने सरस्वती पूजा के अवसर पर लगभग पूरे पंडाल पर धमाल मचाया। पूजा पर मां गाने का तो नामों निशान पता नहीं चल रहा था। दुर्गा पूजा हो या सरस्वती पूजा नौजवानों इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। लेकिन मां के प्रति ये कैसी श्रद्धा है जो इन नौजवानों को शराब की बोतलों में रमकर खून-खराबे में खत्म होती है। पंडाल सजाने से लेकर मूर्ति सजाने और पूजा पाठ तक मां के भक्ति में लीन इन युवाओं को देखकर ऐसा लगता ही नही है विद्या और शक्ति के पुजारी मां के अंतिम विदाई पर शराब के नशे में धुत्त होकर लड़कियों के साथ कैसे छेड़खानी शुरू कर देते हैं। और ऑस्केस्ट्रा में नचानेवालियों के साथ अश्लील गानों नी मर्यादा के सारी हदे तोड़ डालते हैं। मूर्ति विसर्जन को जाते इन युवाओं को जब हमने अश्लील गानों पर नाचनेवाली के साथ अभद्र व्यवहार करते देखा तो सिर शर्म से झुक गया, लगा जिस देश में लड़की को साक्षात मां का रूप माना गया है उसे सरेआम युवाओं द्वारा बेइज्जत किया जा रहा है। यह कैसी अस्मिता है। सरस्वती विसर्जन के लिए जाते-जाते इन्हें न जाने क्या हो जाता है। शराब की बोतले खुलनी शुरू हो जाती है। मजाक-मजाक की बात पर लड़ने-झगने को आतुर हो जाते हैं स्थिति मार-पीट से खून-खराबे में बदल जाती है। ऐसी घटना का गवाह हर साल मां दुर्गा और सरस्वती मां बनता रहा है।
कई लोगों की जानें भी गई है। ये युवा कब अपने मार्ग से भटक से जाते हैं। किसी को पता भी नहीं चलता है। जो मां की अस्मिता को तार-तार कर देता है।

Tuesday, February 8, 2011

मां और वसंत पंचमी



वंसत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा पूरे श्रद्धा-भाव से किया गया। इस दिन विद्यार्थी और संगीत साधक का मां के प्रति साधना ने यह साबित कर दिया है कि आज के वैज्ञानिक युग में भी सरस्वती पूजन का कितना महत्व है। सरस्वती पूजा के पहले ही बच्चे इसकी तैयारी में लग जाते हैं। ऐसा माना जाता है भारतीय सभ्यता-संस्कृति में वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को गुलाल चढ़ाया जाता है और इसके साथ ही होली पर्व की शुरूआत हो जाती है। विद्या की देवी मां सरस्वती ने वसंत पंचमी को सचमुच महान बना दिया है।

Saturday, February 5, 2011

तुलसी


अबकी बारिश ऐसी रुठी
आंगन की तुलसी सुखी
पिछले बरस हरी-भरी थी
बगिया मेरी
चम्पा-चमेली, गुलाब की खुशबू में
तुलसी थी खूब इठलाती
बादल के मंडराने पर कैसी थी गाती
पीली पड़ी पत्ती पर आंशु बहाती
अबकी बारिश ऐसी रुठी
आंगन की तुलसी सुखी

कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़


कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़
लोग हो रहे लाचार
प्यासी धरती सिना चिरे
वर्षा की एक बुंद तो गिरे
महंगाई ने कमर तोड़ी
भूखे पेट सोने की मजबूरी
सूखे की कैसे झेले मार
बेवसी पर सो रहा संसार
सारे तंत्र हो रहे विफल
सब लाचार, सब बेकार
कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़
पल भर मं उजड़े सारे आशियाने
मौत के आगोश में समायी जाने
सरकार करती हवाई दौरे
यहां पड़ रही पेट पर कोड़े
अपने ही अपनों से मुहं फेरे
ईश्वरी प्रकोप ने मचाया ऐसा भूचाल
कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़
लोग हो रहे लाचार
सोचा मेरा दु:ख सबसे बड़ा
देखकर उनका दुख
वो भी हुआ थोड़ा
कौन करे किससे गुहार,
कैसे बताएं अपना हाल
राहत पैकेज से जिन्हें सरोकार
कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़
लोग हो रहे लाचार

Sunday, January 30, 2011

बापू


बापू तुम क्या गये देश से सच्चाई चली गई
अब झूठ में ढुढ़ते हैं यहां सब सच
लेकर कइयों की जानें, बन रहे महात्मा
किसान होकर बेहाल, गला रहे मौत गले
करवा कर दंगे नेता, बन रहे हैं भले
बापू तुम क्या गये देश से सच्चाई चली गई।।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मर कर भी हम भारतीयों को जीने तरीका सीखा गये। आज भी अगर हमारी पहचान दुनिया में सभ्यता के शिखर पर है तो उसका मूल कारण है गांधी जी के वे मूल मंत्र सत्य, अहिंसा जिसने हमें किसी भी परिस्थिति में डिगने नहीं दिया। हमने गांधी जी को नहीं देखा, कई लोग कहते हैं उन्होंने देश को बंटा है। सच्चाई क्या है ये भी हम नहीं जानते हैं। लेकिन चंद लोगों के कहने और करोड़ों लोगों के मानने में अंतर होता है। इसलिए बापू युग पुरुष कहलाये। उस युग पुरुष ने हमें सत्य की राह पर चलाना सिखाया तथा किसी समस्या का हल हिंसा नहीं बल्कि अहिंसा के द्वारा होने का पाठ पढ़ाया। आज जिस प्रकार देश भष्टाचार महंगाई की आग में जल रहा है। और देश के नेता इसे खत्म करने के बजाय अपना मतलब साधने में लगे हैं। यह बापू की उन सपनों पर कुठाराघात है जिसमें उन्होंने उभरते भारत को प्रगति के पथ पर देखा था। उनके पुण्यतिथि को देश कुष्ठ निवारण दिवस के रूप में मनाता है। हम सभी जानते हैं कि कुष्ठ कोई दैवीय प्रकोप नहीं है बल्कि एक साधारण रोग है जो दवा से ठीक हो जाता है। लेकिन आज भी देश के ग्रामीण इलाकों में कुष्ठ रोग के प्रति भी क्या सोच है और कैसी जागरूकता है ये हम सभी बहुत अच्छी तरह जानते हैं। जिस गांधी ने देश की आत्मा गांवों में देखा। यही वजह है कि उन्होंने अपनी कर्मभूमि पश्चिम चम्पारण में नील की खेती से बनाया। लेकिन आज के युवा धरती के लगाव से कटते जा रहे हैं। शहरों में बहुमंजिला इमारतों में रहना उन्हें पसंद है पर धरती मां जो उन्हें खाने को अन्न देती और सुकुन भरी जिंदगी में रहना पसंद नहीं है। मशीनों में इतने उलझ गये हैं कि बंजर होती धरती को उपजाऊ बनाने का समय नहीं है। जिस अहिंसा के बल पर बापू ने अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। उसका गलत प्रयोग कर आज के नेता दंगा करवा रहे हैं। सत्य के मार्ग पर नहीं चलने का नतीजा है कि आज भष्टाचार देश के लिए बिकट समस्या बन गया है।

Friday, January 28, 2011

भारत का प्रादुर्भाव

वीरों के बलिदानों से सजी हमारी धरती
सौ सालों की गुलामी से जकड़ी हमारी धरती
विस्फोटों और बंजरपन से हर पल से सिसकती।
अशिक्षा, आडंबर, आतंकवाद जड़े तोड़ती।
पश्चिमी आकर्षण सभ्यता-संस्कृति की गला घोंटती,
विनाशकारी ये बवंडर जाने किस दिशा से आयी।
गांधी, बुद्ध, सुभाष की धरती पर प्रलय लायी।
स्वार्थ और कामवासना की लौलिप्ता में आंखें अंधरायी
कोई तो करे पहल रुक जाये अस्तित्व की लड़ाई
फिर से लाना होगा इंकलाब, भरना होगा मन में भाव
अपनों में हीं नहीं, दुनिया में भी जगाना होगा सद्भाव
बनकर एकताशक्ति, तोड़कर जंजीर दिखाना हैं संभाव
सुस्कृति, अहिंसा और प्रेम का लाना है सैलाव
तभी होगा सर्वगुण संपन्न नये भारत का प्रादुर्भाव

प्रचार का माध्यम

फ्लैक्स प्रिंटिंग से बने होर्डिंग, पोस्टर और बैनर प्रचार-प्रसार का मुख्य माध्यम बन गया है। किसी भी शहर में प्रवेश करते ही आपको होर्डिंग पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा मिलेगा शहर में आपका स्वागत है से मन खुशी से झूम उठता है। आपको अपरिचित शहर भी अपना सा लगने लगता है या फिर किसी भी ब्रांडेड कंपनी के होर्डिंग को देखते ही आपको याद आ जाता है कि ऐसा ही तो मेरे शहर में भी कुछ ऐसा ही छपा हुआ था। फ्लैक्स प्रिंटिंग से बने ये होर्डिंग और बैनर शहर की शोभा तो बढ़ा ही रहा है साथ ही कई लोगों को रोजगार भी दे रहा है। किसी प्रकार का कार्यक्रम हो हर चौक-चौराहे से लेकर निजी मकानों के छत पर होर्डिंग, बैनर विज्ञापन के तौर पर दिख जाएंगे। इस बारे में एडवरटिजमेंट करने वालों का मानना है कि कम्प्यूटराईज प्रिंटिंग मनमोहक और आकर्षक होते हैं जो प्रत्यक्ष रुप से लोगों को प्रभावित करते हैं। आप मनमुताबिक इसपर छपवा सकते हैं। इसकी उपयोगिता उससमय देखते बनती है जब किसी राजनीतिक पार्टी के द्वारा रैली या सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। सारा शहर होर्डिंग, बैनर और पोस्टरों से पटा मिलता है। और इसको लेकर अखबारों में खबरें छपते हैं। सरकारी की किसी योजना की जानकारी देनी हो, बधाई देना, जयंती की मनाना, शोक व्यक्त करना हो तो फ्लैक्स प्रिंटिंग सरल और सस्ता माध्यम है। अमीर हो या फिर गरीब हर कोई अपने साम्र्थय के अनुसार अपने आपको प्रमोट करता है। आमजनों में इसके प्रचलित होने का मुख्य कारण है इसका टिकाऊपन और सस्ता छपाई दर। प्लास्टिक के रेशे से बने होने के कारण जाड़ा, गर्मी या बरसात से भी इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बरसात में इसे पानी से बचने और गर्मी में धूप से बचने के लिए किया जाता है। चाहे तो आप इसे कैरी बैग बना ले या फिर बच्चे के बिछावन के नीचे रखे हर रुप में प्रयोग किया जा सकता है। एक जमाना था जब प्रचार-प्रसार के लिए कागज और कपड़े के बने पोस्टर और बैनर का उपयोग किया जाता था। लेकिन इसके टिकाऊपन न होने के कारण इसका मार्केट गिर गया । यही कारण है कि फ्लैक्स प्रिंटिंग निर्मित बैनरों की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। हमारे राज्य में फ्लैक्स प्रिंटिंग का कारोबार 1995 शुरू में हुआ। इसे शुरू करने वाली कंपनी का नाम जगदम्बा टे्रडर्स ने पहला फ्लैकस छापने की मशीन राजधानी के एक्जिविशन रोड में लगायी।

Tuesday, January 25, 2011

आजादी के परवाने


आजादी के परवानेकैसे थे मतवाले
दे कर प्राणों की बलि, खो गये जाने कहां
छोड़ गये खुशियां, ले गये गम मोती वाले
आजादी के दिवाने गजब के थे दिल वाले
मरते दम तक साथ ना छोड़ा,
चाहे पड़ते रहे उन परे हथौड़ा
दिल लगाया भी देश से, मिट गये भी देश पर
आजादी के रखवाले ऐसे थे संयम वाले।

न्याय में विश्वास

भारत अपने गणतंत्रता के 61 वां साल पूरा करने को तत्पर है। पिछले 60 सालों में हम अपने अधिकारों और कत्र्तव्यों के प्रति ज्यादा सजग हुए हैं। समाज के निचले पायदान पर गुजर-बसर करने वाला आदमी भी न्याय में विश्वास रखते हुए न्याय पा रहा हैं। कानून की जटिलता उन्हें कुछ निराश करती है लेकिन देर-सवेर न्याय जरूर मिलता है। इसका मुख्य कारण है टेक्नोलॉजी और मीडिया की आम लोगों तक पहुंच। जिसके कारण जुल्म करने वाला कानून के शिकंजे में नजर आ रहा है। भारतीय संविधान ने 60 सालों में अबला कही जाने वाली नारी की आवाज को बुलंद ही नहीं किया है बल्कि महिलाओं पर अत्याचार करने वाले को सबक भी सीखाया है। चाहे कितना भी प्रभावशाली व्यक्ति हो अगर उसने किसी भी महिला की आवाज को दबाने की कोशिश किया है। उसे कानून ने अपने अंदाज में जवाब दिया है। आइए जानते हैं किन-किन महिलाओं ने विपरीत परिस्थितियों में पाया न्याय....
रुचिका हत्याकांड- 1990 में हरियाणा के वर्तमान पुलिस महानिदेशक एस.पी. राठौर ने एक उभरते टेनिस खिलाड़ी रुचिका गिरहोत्रा के साथ छेड़खानी की। विरोध करने पर पद की पहुंच से रुचिका और उसके घर वालों को तरह-तरह परेशान किया। उसके बाद 1993 में परेशानी से तंग आकर रुचिका ने आत्महत्या कर लिया। लेकिन मीडिया और उसकी सहेली ने मौत को मरने नहीं दिया। मामला हाईप्रोफाइल होने के बावजूद भी पूरे 17 साल बाद सत्य और न्याय की जीत हुई और एस.पी. राठौर कानून की शिकंजे में आया।
जेसिका लाल हत्याकांड- 29 अप्रैल 1999 को दिल्ली में मशहूर सोशलाइट बीना रमानी के पार्टी में कुछ रईसजादे शराब पी रहे थे। लेकिन बार टेंडर जेसिका लाल द्वारा शराब खत्म हो जाने के कारण नहीं दिया। शराब के नशे में धुत्त मनु शर्मा ने जेसिका पर धरा-धर गोलिया दाग दी। मंत्री के बेटे होने के कारण केस को दबाये जाने की कोशिश की गई, लेकिन कत्र्तव्यपरायन जेसिका लाल की हत्या ज्यादा दिनों तक दबा नहीं रह सका। एक निजी चैनल ने इस केस उठाया और 11 साल बाद जेसिका के हत्यारों को सजा मिली। जिसमें मनु शर्मा को उम्रकैद व अन्य दो आरोपियो को सजा मिली।
अरुषि हत्याकांड- 16 मई 2008 नोयडा में एक स्कूली छात्रा अपने कमरे में मृत पायी गई। उसकी हत्या गला रेत कर दी गई थी। इस हत्या का शक घरेलू नौकर हेमराज पर जाता है लेकिन उसका भी शव अगले दिन छत पर मिलता है। यह एक अनसुलझी एवं मानवता को शर्मसार करने वाली घटना थी जिसमें एक नाबालिग लड़की का अवैध संबंध नौकर के साथ बताया गया। सीबीआई को इस घटना में अभी तक नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। सीबीआई अरुषि हत्या के पीछे मां-बाप का हाथ बता रही है। लेकिन कुछ साबित न कर पाने के कारण इस घटना को अनसुलझा बता कर फाईल बंद करने की घोषणा कर दी। लेकिन महिला आयोग, कानून मंत्रालय और मीडिया की पहल पर अरुषि की मौत को भारतीय संविधान ने जीवित रखा है।
मधुमिता हत्याकांड- 9 मई 2003 में लखनऊ की कवित्री मधमिता शुक्ला की हत्या उसके घर पर कर दी जाती है। लेकिन मधुमिता के घरेलू नौकर के द्वारा हत्यारों की शिनाख्त करने के बाद अभियुक्त संतोष राय और पांडे पकड़ा जाता है। केस उस समय रोचक हो जाता है जब मधुमिता के पोस्टमार्टम में वह गर्भवती पायी जाती है। और काफी मशकत के बाद हत्यारे अपने-आप को मोहरा बताते हैं। फिर हत्या करने वाले का नाम उगलता है। उस साजिशकर्ता का नाम होता उत्तरप्रदेश के पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी । जब अमरमणि त्रिपाठी डीएनए जांच करवायी जाती है जो मधुमिता के पेट से निकले भ्रून दोनों समान होते हैं। इस प्रकार विपरीत परिस्थितियों के बाद भी सीबीआई साबित कर देता है कि अमरमणि त्रिपाठी और उसकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी ने साजिश तहत मधुमिता की हत्या करवायी। इस प्रकार अमरमणि त्रिपाठी के हाईप्रोफाइल होने के बावजूद उम्र कैद की सजा मिलती है।
तंदूर कांड- 15 साल पाहले दिल्ली में कांग्रेसी नेता सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना सहनी को अवैध संबंध के शक में गोली मार कर हत्या कर देता है। और फिर लाश को टुकड़ा-टुकड़ा काटकर एक रेस्टरा के तंदूर में झोंक देता है। लेकिन आदमी की लाश जलने की महक से पास गुजर रहे पुलिस कांस्टेबल ने शक किया और फिर छानबीन करने के दौरान नैना सहनी के कुछ महत्वपूर्ण चीजे तंदूर से मिलता है। जिसके बाद सुशील शर्मा कानून के फंदे में फंस जाता है। और मीडिया और सामाजिक संगठनों की सजगता के कारण सुशील शर्मा को कानून को खिलौना एवं मानवता की हत्या करने के जुल्म में मौत की सजा सुनायी जाती है।

Saturday, January 8, 2011

चुड़ियों की झंकार

चुड़ियों की झंकार नहीं, कलमवाली तलवार से जीतेंगे हम मन लोगों का।
अब पायल की छन-छन नहीं करती हमें कमजोर
बंद चहार-दीवारी की घुटनभरी जिन्दगी हमने दिया छोड़
महकेगी-दमकेगी बगीया मां की उन सपनों की जो देखे थे अपने लिए
मर्यादा के नाम पर बंधनों में बांधना अब जा भूल।
धोखे में रखने की चाहत होगी फिजूल
जीवन के कसौटी से सबक लेके एक नया मुकाम बनायेंगे।
तन ही नहीं मन की दृढ़शक्ति से दुनिया में नाम कमायेंगे।
अबला नहीं सबला बनके सबको राह दिखायेंगे।
घर की जिम्मेदारियों से लेकर बाहर में भी वर्चस्व बनायेंगे
क्योंकि चुड़ियों की झंकार नहीं कलमवाली तलवार से जीतेंगे हम मन लोगों का

Friday, January 7, 2011

नई सोच के साथ सबल होती महिला

नया वर्ष दस्तक दे चुका है। नई उमंगे हर्ष और उल्लास के साथ मन के अन्दर उमड़-घुमड़ रहे हैं कि आने वाला समय को किस प्रकार नई सोच से संवारा जाये। बच्चे, बुढ़े हो या फिर जवान सभी नई जोश के साथ आगे बढ़ने को तैयार हैं। आने वाले समय में भी महिलाएं जिसके रुप अनेक, स्वरुप एक खुशियां बांटना। चाहे वो खुशी उसके खाने से हो, या फिर परिवार को आर्थिक रुप से हाथ बंटाकर। घर-आंगन से लेकर दुनियां के हर छोर पर महिलाओं का परचम लहरा रहा है। सभी क्षेत्रों में इनकी भागीदारी दिन दोगुनी, रात चौगुनी बढ़ रही है। आज की महिलाएं अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर नित नये आयाम बनाते जा रही है। घर की शोभा मात्र समझी जाने वाली स्त्री बड़े-बड़े कारपोरेट जगत के फलने-फुलने में अहम भूमिका निभा रही हैं। जहां राष्ट्रीय स्तर पर चंदा कोचर, इंदिरा नुयी, शोभना भरतीया, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा, प्रियंका चोपड़ा जैसी लाखों स्त्रियां अपने गुण और कौशल से सब पर छा रही हैं। वहीं इस राज्य की भी स्त्रियां किसी भी मामले में कमतर नहीं दिखती हैं। पुष्पा चोपड़ा, शारदा सिन्हा, नीतू चन्द्रा, लोक सभा अध्यक्ष मीरा कुमार, समाज कल्याण मंत्री परवीन अमानुल्लाह वंदना प्रेयसी, शिला ईरानी जिसने अपनी मेहनत के बल पर एक मुकाम बनाया है।

Wednesday, January 5, 2011

थूकने

थूकने वाले कहां-कहां नहीं थूकते
सीढ़ी के कोने में, घर के दीवारों पर
ऑफिस के बेसिन में
थूकते-थूकते थूक लेते हैं भाग्य पर
फिर भी उनकी आंखे रहती है बंद
दिन-व-दिन हौसले होते हैं बुलंद
कोई पान खाकर थूकता है
तो कोई खैनी और कोई गुटखा
एक जमाना हुआ करता था थूकने का
अब बुढ़ा-बच्चा सभी है आदी थूकने का
आदी कहें या मजबूरी
जिंदगी की कम पड़ी धूरी
चबाते-चबाते जबड़े ने दिया जवाब
उन्हें शायद पता नहीं जिसे समझते हैं
मर्दांगनी, वही ढकेल रहा है नामर्दगी की
अब भी तो समझो जनाब।