Tuesday, January 25, 2011

न्याय में विश्वास

भारत अपने गणतंत्रता के 61 वां साल पूरा करने को तत्पर है। पिछले 60 सालों में हम अपने अधिकारों और कत्र्तव्यों के प्रति ज्यादा सजग हुए हैं। समाज के निचले पायदान पर गुजर-बसर करने वाला आदमी भी न्याय में विश्वास रखते हुए न्याय पा रहा हैं। कानून की जटिलता उन्हें कुछ निराश करती है लेकिन देर-सवेर न्याय जरूर मिलता है। इसका मुख्य कारण है टेक्नोलॉजी और मीडिया की आम लोगों तक पहुंच। जिसके कारण जुल्म करने वाला कानून के शिकंजे में नजर आ रहा है। भारतीय संविधान ने 60 सालों में अबला कही जाने वाली नारी की आवाज को बुलंद ही नहीं किया है बल्कि महिलाओं पर अत्याचार करने वाले को सबक भी सीखाया है। चाहे कितना भी प्रभावशाली व्यक्ति हो अगर उसने किसी भी महिला की आवाज को दबाने की कोशिश किया है। उसे कानून ने अपने अंदाज में जवाब दिया है। आइए जानते हैं किन-किन महिलाओं ने विपरीत परिस्थितियों में पाया न्याय....
रुचिका हत्याकांड- 1990 में हरियाणा के वर्तमान पुलिस महानिदेशक एस.पी. राठौर ने एक उभरते टेनिस खिलाड़ी रुचिका गिरहोत्रा के साथ छेड़खानी की। विरोध करने पर पद की पहुंच से रुचिका और उसके घर वालों को तरह-तरह परेशान किया। उसके बाद 1993 में परेशानी से तंग आकर रुचिका ने आत्महत्या कर लिया। लेकिन मीडिया और उसकी सहेली ने मौत को मरने नहीं दिया। मामला हाईप्रोफाइल होने के बावजूद भी पूरे 17 साल बाद सत्य और न्याय की जीत हुई और एस.पी. राठौर कानून की शिकंजे में आया।
जेसिका लाल हत्याकांड- 29 अप्रैल 1999 को दिल्ली में मशहूर सोशलाइट बीना रमानी के पार्टी में कुछ रईसजादे शराब पी रहे थे। लेकिन बार टेंडर जेसिका लाल द्वारा शराब खत्म हो जाने के कारण नहीं दिया। शराब के नशे में धुत्त मनु शर्मा ने जेसिका पर धरा-धर गोलिया दाग दी। मंत्री के बेटे होने के कारण केस को दबाये जाने की कोशिश की गई, लेकिन कत्र्तव्यपरायन जेसिका लाल की हत्या ज्यादा दिनों तक दबा नहीं रह सका। एक निजी चैनल ने इस केस उठाया और 11 साल बाद जेसिका के हत्यारों को सजा मिली। जिसमें मनु शर्मा को उम्रकैद व अन्य दो आरोपियो को सजा मिली।
अरुषि हत्याकांड- 16 मई 2008 नोयडा में एक स्कूली छात्रा अपने कमरे में मृत पायी गई। उसकी हत्या गला रेत कर दी गई थी। इस हत्या का शक घरेलू नौकर हेमराज पर जाता है लेकिन उसका भी शव अगले दिन छत पर मिलता है। यह एक अनसुलझी एवं मानवता को शर्मसार करने वाली घटना थी जिसमें एक नाबालिग लड़की का अवैध संबंध नौकर के साथ बताया गया। सीबीआई को इस घटना में अभी तक नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। सीबीआई अरुषि हत्या के पीछे मां-बाप का हाथ बता रही है। लेकिन कुछ साबित न कर पाने के कारण इस घटना को अनसुलझा बता कर फाईल बंद करने की घोषणा कर दी। लेकिन महिला आयोग, कानून मंत्रालय और मीडिया की पहल पर अरुषि की मौत को भारतीय संविधान ने जीवित रखा है।
मधुमिता हत्याकांड- 9 मई 2003 में लखनऊ की कवित्री मधमिता शुक्ला की हत्या उसके घर पर कर दी जाती है। लेकिन मधुमिता के घरेलू नौकर के द्वारा हत्यारों की शिनाख्त करने के बाद अभियुक्त संतोष राय और पांडे पकड़ा जाता है। केस उस समय रोचक हो जाता है जब मधुमिता के पोस्टमार्टम में वह गर्भवती पायी जाती है। और काफी मशकत के बाद हत्यारे अपने-आप को मोहरा बताते हैं। फिर हत्या करने वाले का नाम उगलता है। उस साजिशकर्ता का नाम होता उत्तरप्रदेश के पूर्व मंत्री अमर मणि त्रिपाठी । जब अमरमणि त्रिपाठी डीएनए जांच करवायी जाती है जो मधुमिता के पेट से निकले भ्रून दोनों समान होते हैं। इस प्रकार विपरीत परिस्थितियों के बाद भी सीबीआई साबित कर देता है कि अमरमणि त्रिपाठी और उसकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी ने साजिश तहत मधुमिता की हत्या करवायी। इस प्रकार अमरमणि त्रिपाठी के हाईप्रोफाइल होने के बावजूद उम्र कैद की सजा मिलती है।
तंदूर कांड- 15 साल पाहले दिल्ली में कांग्रेसी नेता सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना सहनी को अवैध संबंध के शक में गोली मार कर हत्या कर देता है। और फिर लाश को टुकड़ा-टुकड़ा काटकर एक रेस्टरा के तंदूर में झोंक देता है। लेकिन आदमी की लाश जलने की महक से पास गुजर रहे पुलिस कांस्टेबल ने शक किया और फिर छानबीन करने के दौरान नैना सहनी के कुछ महत्वपूर्ण चीजे तंदूर से मिलता है। जिसके बाद सुशील शर्मा कानून के फंदे में फंस जाता है। और मीडिया और सामाजिक संगठनों की सजगता के कारण सुशील शर्मा को कानून को खिलौना एवं मानवता की हत्या करने के जुल्म में मौत की सजा सुनायी जाती है।

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