Friday, January 28, 2011

भारत का प्रादुर्भाव

वीरों के बलिदानों से सजी हमारी धरती
सौ सालों की गुलामी से जकड़ी हमारी धरती
विस्फोटों और बंजरपन से हर पल से सिसकती।
अशिक्षा, आडंबर, आतंकवाद जड़े तोड़ती।
पश्चिमी आकर्षण सभ्यता-संस्कृति की गला घोंटती,
विनाशकारी ये बवंडर जाने किस दिशा से आयी।
गांधी, बुद्ध, सुभाष की धरती पर प्रलय लायी।
स्वार्थ और कामवासना की लौलिप्ता में आंखें अंधरायी
कोई तो करे पहल रुक जाये अस्तित्व की लड़ाई
फिर से लाना होगा इंकलाब, भरना होगा मन में भाव
अपनों में हीं नहीं, दुनिया में भी जगाना होगा सद्भाव
बनकर एकताशक्ति, तोड़कर जंजीर दिखाना हैं संभाव
सुस्कृति, अहिंसा और प्रेम का लाना है सैलाव
तभी होगा सर्वगुण संपन्न नये भारत का प्रादुर्भाव

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