Saturday, February 12, 2011
प्रवृत्तियां
वाह रे मनुष्य वाह रे तेरी प्रवृत्तियां
दुख में भी खुश होकर जीना चाहता है।
मृत्यु की सईयां पर लेटकर,
जीवन का एक क्षण जीना चाहता है।
हर पल लड़ता है अपने दुखों से,
फिर भी हंसकर सबको दिखाना चाहता है।
वाह रे मनुष्य, वाह रे तेरी प्रवृत्तियां
कर्म की कमी नहीं,
पर बैठकर खाने का आनंद उठाना चाहता है।
चाहे धन कितना अर्जित कर ले,
पर धन का लोभ नहीं छोड़ना चाहता है।
अपनो ंकी कमी नहीं,
फिर भी दूसरों में अपनों को ढूढ़ना चाहता है।
वाह रे मनुष्य, वाह रे तेरी प्रवृत्तियां
ढूंढों तो सुन्दरता की कमी नहीं,
पर सुन्दर बनने का ढोंग रचाना चाहता है।
राम के नाम को गाली देकर,
राम नाम जपना चाहता है।
बेटा-बेटी एक समान है
पर बेटा से अपना अंतिम संस्कार चाहता है।
वाह रे मनुष्य, वाह रे प्रवृत्तियां
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