Saturday, January 8, 2011

चुड़ियों की झंकार

चुड़ियों की झंकार नहीं, कलमवाली तलवार से जीतेंगे हम मन लोगों का।
अब पायल की छन-छन नहीं करती हमें कमजोर
बंद चहार-दीवारी की घुटनभरी जिन्दगी हमने दिया छोड़
महकेगी-दमकेगी बगीया मां की उन सपनों की जो देखे थे अपने लिए
मर्यादा के नाम पर बंधनों में बांधना अब जा भूल।
धोखे में रखने की चाहत होगी फिजूल
जीवन के कसौटी से सबक लेके एक नया मुकाम बनायेंगे।
तन ही नहीं मन की दृढ़शक्ति से दुनिया में नाम कमायेंगे।
अबला नहीं सबला बनके सबको राह दिखायेंगे।
घर की जिम्मेदारियों से लेकर बाहर में भी वर्चस्व बनायेंगे
क्योंकि चुड़ियों की झंकार नहीं कलमवाली तलवार से जीतेंगे हम मन लोगों का

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