Saturday, March 5, 2011

साहित्यिक बातों को कितनी जगह

अखबार के पते पर आने वाले पत्रों में कविता, कहानी लेख की संख्या अन्य प्रकार के पत्रों की संख्या से मुकाबले दोगुनी या तीगुनी होती है। कविता कहानी और लेख को रोज इकट्ठा किया जाए तो कोई भी अखबार महीने में एक से दो पुस्तकें जरूर प्रकाशित कर सकता है। अखबारों के व्यावसायकि होने के कारण खबरें पहले से ही संकुचित हो चुकी है इस परिस्थिति कविता, लेख और कहानियां कहां से सांस ले पायेगी। इस देश ने पूरी दुनियां को एक से बढ़कर एक साहित्कार, कथाकार दिये हैं। लेकिन दुख की बात है इस देश के एक प्रतिष्ठित समाजपत्र ने लोकल फीचर डेस्क को खत्म कर दिया है। साहित्य सदा से हमारे समाज का आईना रहा है। इन्हीं कविता, कहानी और नारों के दम पर हमारे महापुरुषों ने अंग्रेजों के नाक में दम किया था। लेकिन आज दिनों-दिन जिसप्रकार महंगाई बढ़ती जा रही है बिना पैसे के एक कदम भी बढ़ना जहां मुश्किल है वहीं कम पैसे में कहानी , कविता और लेख कैसे सांस ले पायेगी। यह बात सच है कि साहित्य के प्रति आज भी लोगों में वही रुचि है जो पहले हुआ करती थी। इस कारण लोगों में इन अखबारों में इनका डिमांड भी अधिक होता है। लेकिन क्या केवल अखबार बिकने से अखबार मालिक अपना व्यवसाय चला पायेंगे। आज एक अच्छे पत्रकार का वेतन 25-30 हजार है ऐसे में अखबार इन साहित्यिक बातों को कितना जगह दे पायेगा। ये आप बेहतर सोच सकते हैं। जो व्यक्ति कविता, लेख और पुस्तक समीक्षा करके अपनी जेब खर्च निकालते हैं।

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