Saturday, February 5, 2011

कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़


कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़
लोग हो रहे लाचार
प्यासी धरती सिना चिरे
वर्षा की एक बुंद तो गिरे
महंगाई ने कमर तोड़ी
भूखे पेट सोने की मजबूरी
सूखे की कैसे झेले मार
बेवसी पर सो रहा संसार
सारे तंत्र हो रहे विफल
सब लाचार, सब बेकार
कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़
पल भर मं उजड़े सारे आशियाने
मौत के आगोश में समायी जाने
सरकार करती हवाई दौरे
यहां पड़ रही पेट पर कोड़े
अपने ही अपनों से मुहं फेरे
ईश्वरी प्रकोप ने मचाया ऐसा भूचाल
कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़
लोग हो रहे लाचार
सोचा मेरा दु:ख सबसे बड़ा
देखकर उनका दुख
वो भी हुआ थोड़ा
कौन करे किससे गुहार,
कैसे बताएं अपना हाल
राहत पैकेज से जिन्हें सरोकार
कहीं बाढ़, कहीं सुखाड़
लोग हो रहे लाचार

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