Friday, December 31, 2010

नर्व वर्ष

पुलकित ये मन मेरा आज ये गाता है,
नया वर्ष है स्वागत तुम्हारा
नजराने तेरे, संवरे कल हमारा
हर पल करुं तेरा नमन
सुखी बने सबका जीवन
पुलकित ये मन मेरा आज ये गाता है
नया वर्ष है स्वागत तुम्हारा
नया जोश, नई उमंग पल-पल हो संग
मौत के बदले हो सत्य की जंग
खुशी आये सबके द्वारे
आंखों के सपने बन जायें तारे
पुलकित ये मन मेरा आज ये गाता है
नव वर्ष है स्वागत तुम्हारा

Thursday, December 30, 2010

झरझरिया का कमाल

हमारे उभरते भारत में शहर तरक्की की राह में पल-पल नया मुकाम बनाता जा रहा है। शहरों में बुनियादी सुविधाएं पलक झपकते हीं आंखों के सामने आ जाती है। लेकिन दूसरी ओर गांव जहां हमारी आत्मा बसती है, हम लाख तरक्की पर तरक्की कर ले। लेकिन हमारी जड़े हमेशा गांवों में ही रहेगी।
हम बात कर रहे हैं देश के सबसे गरीब कहे जाने वाले राज्य बिहार की। दूर-दराज के देहाती क्षेत्रों में आज भी बुनियादी सुविधाएं न के बराबर नजर आती है। गांव के लोग बीमार हो या कोई गर्भवती महिला खटिया पर ही टांग कर अस्पताल ले जाया जाता है।
इन सभी परेशानियों और दिक्कतों के बीच एक आशा की किरण दिखी है वो है झरझरिया। नाम सुन के कुछ अटपटा लगेगा, पर चीज है बड़े कमाल का, चलता है पेट्रॉल से, पर नाम है ठेलागाड़ी। जहां तक बैलगाड़ी की बात मोटरगाड़ियों के आने से इसका अस्तित्व मानों खत्म सी होती जा रही है। अब बैलगाड़ी गिने-चुने जगहों पर ही चलती है। शहरों में जहां इसका प्रयोग समान ढोने में किया जाता है। वहीं ग्रामीण इलाकों में झरझरिया का कमाल सभी के सर चढ़ कर बोल रहा है। अनाज, खाद या फिर किसी प्रकार की ढलाई का काम हो झरझरिया हर १० मिनट पर हाजिर मिलता है। झुंड के झुंड ग्रामीण इस पर चढ़कर नजदीकी बाजार में खरीदारी के लिए जाते हैं।

Thursday, December 23, 2010

प्याज ने उड़ाई सरकार की नींद


सरकार की गलत नीतियों के कारण आज महंगाई आसमान छू रही है। इस महंगाई में आम से लेकर खास को भी नाको चने चबाने पड़ रहे हैं। सभी परेषानियों से बेपरवाह सरकार केवल यह बयान जारी करती है कि जल्द ही महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा। यह कैसी नीति है किसी को भी समझ में नहीं आ रही है कि आखिर सरकार क्या चाहती है? क्या गरीब जनता उनके दिलासों से अपने घर का चुल्हा फुकें या अंत में जन आंदोलन कर उस सरकार को गद्दी से उठा फेंके। जिस प्याज ने कभी ऐसा रुलाया था कि उस समय की वर्तमान वाजपेयी सरकार को चुनाव में औंधे मुहं गिरनी पड़ी थी। लो आज भी फिर वही घड़ी आयी है। आज प्याज 80रुपया और लहसुन 250 रुपये बिक रहे हैं। प्याज की कीमतों में अप्रत्याषित वृद्धि ने सरकार की नींद हराम कर दिया है। सरकार आनन-फानन में केन्द्र और राज्य स्तर पर जमाखोरों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही है। अधिक से अधिक प्याज आयात करने पर जोर दिया जा रहा है। प्रष्न यह उठता है कि जो कदम आज उठाया जा रहा है वह चीजों के दाम बढ़ने के पहले क्यों नहीं उठायी जाती है। क्या उनको वस्तुओं के दाम बढ़ने की जानकारी नहीं होती है, या जानबुझ कर आम जनता के अरमानों के गला घोंटने की साजिष की जाती है। कारण कोई भी हो सरकार को प्याज और लहसुन जैसी रोजमर्रा की खाद्य पदार्थों के कीमतों पर लगाम लगाना ही पड़ेगा, नही तो ये प्याज सरकार को रोने तक का मौका नहीं देगा।

Friday, December 17, 2010

उद्योग के लिए सरकार के खुले द्वार

राज्य सरकार इस बार बिहार में औद्योगिक विकास पर मुख्य रुप से ध्यान देने का मन बना लिया है। इसका मुख्य कारण पहले के मुकाबले लॉ इन आॅर्डर का बेहतर होना माना जा रहा है। उद्योगपतियों और कारोबारियों के अंदर से अब भय का आतंक समाप्त हो गया है जो लालू-राबड़ी “ाासन काल में था। मुख्यमंत्री नीतीश ने सभी को बेफ्रिक होकर उद्योग-धंधे लगाने की बात कही है। इसी उत्साह को देखते हुए उपमुख्यमंत्री सुषील कुमार मोदी ने छोटे कारोबारियों सहित कई उद्योग के क्षेत्र में सरकारी सहायता के खजाने खोल दिये हैं।
उपमुख्यमंत्री सुषील कुमार मोदी ने गुरुवार को बुनकरों के ऋण माफी की घोशणा कर दी, साथ ही उद्योगों के लिए नई औद्योगिक नीति लागू करने की बात कही। उन्होंने कहा जल्द ही लौरिया और सुगौली मिले इसी माह चालू कर दी जाएगी। गौरतलब है कि कभी बिहार में सबसे अधिक चीनी मिल हुआ करती थी, लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण अब केवल 3 चीनी मिल ही चल रहे हैं। बिहार के लोग बाहर जाकर मार न खाये इसके लिए रैयाम, सकरी, बिहटा, मोतीपुर में भी जल्द ही उत्पादन “ाुरु किया जाएगा तथा अप्रैल तक पूर्णिया के मरंगा में जूट पार्क की स्थापना किया जाएगा साथ ही उद्यमियों को सरकारी कार्यालय का चक्कर न लगाना पड़े, इसके लिए सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था की जाएगी। इससे भ्रश्टाचार पर भी बहुत तक लगाम लगाया जा सकेगा। राज्य सरकार के इस पहल को देखते हुए केन्द्र सरकार ने भी बिना गारंटी के लोन देने की घोशणा कर दी है। राज्य सरकार ने भी अब सौ चावल मिल स्वीकृति के साथ किसानों द्वारा खरीदे खद्यान्नों के लिए गोदाम खोलने की घोशणा कर दी है। उद्यमियों को राज्य सरकार के योजनाओं का लाभ सही ढं़ग से मिल सके इसके लिए जल्द ही सम्मेलन करने की बात कही गई है।

Thursday, December 9, 2010

वसुधैव कटूम्कम

वसुधैव कटूम्कम का नारा बुलंद करने वाला भारत आज खुद अन्याय और अत्याचार का शिकार हो रहा है। पूरे विश्व में यहां के नागरिकों के साथ दुवर््वहार हो रहा है। चाहे आस्ट्रेलिया कनाडा में भारतीय छात्राों पर जानलेवा हमला हो या फिर पूर्व राष्ट्रपति अब्दूल कलाम और बालीवूड के सुपर स्टार शाहरूख खान के एयरपोर्ट पर हुए उनके साथ दुवर््यवहार भारतीय अस्मिता को तार-तार किया है। अगर अभी भी सरकार कोई कदम नहीं उठाती है तो भारतीय का विदेश जाना दुर्भर हो जाएगा। कहीं देशवासियों का संपर्क ही ना टूट जाये क्योंकि भारतीयों का खुन में, बेइज्जती सहना स्वीकार नहीं है। हाल में ही अमेरिकी राश्ट्रपति बराक ओबामा ने माना है भारत एक विष्वाक्ति बन चुका है। इसलिए तो यहां अपने यहां बेरोजगारी समाप्त करने के लिए रोजगार तलाषने के लिए आये थे। इस वैश्वीकरण के दौर में जहां भारत दुनियां व्यापार से लेकर सॉफ्रटवेयर इंडस्ट्रीज तक एकछत्रा राज बना हुआ है वैसी परिस्थति में नातो भारतीयों के लिए यह अच्छा रहेगा और नाहि विश्व समुदाय के लिए हीं क्योंकि विश्व के लिए भारत दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। इसमें ना सिर्फ भारत के नागरिकों का नुकसान है अपितु सम्पूर्ण विश्व में मौजूद कार्मिक नागरिकों का भी नुकसान है जो कि दुनियां भर में भारत के बाहर और भारत में काम कर रहे हैं। वे बेरोजगार हो जायेंगे। इसलिए वैसुधैव कटूम्कम की भावना ना सिर्फ भारतीयों के लिए अपितु विश्व में मौजूद सभी देशों अति आवश्यक है। इससे विश्व बंधुत्व की भावना पैदा होगी, और नस्लवाद को समाप्त करने में यह एक बड़े हथियार में काम आयेगा। इस लिए भारतीयों के साथ हो दुवर््यवहार को मानवीय मूल्यों पर कुठाराघात मानकर सतापक्ष विपक्ष को एक सूर में आवाज उठानी होगी। हमें दुनियां के सामने फिर से स्वामी विवेकानन्द की शिकागो में दिये उस भाषण को याद दिलाना होगा जिसमें उन्होंने दुनियां भाई-बहन के मायने से अवगत कराया था। विश्व गुरू कहे जाने वाले भारत को दुनियां से यह बताना जरूरी हो गया है कि हमसे है जमाना, जमाने से हम नहीं।

Monday, December 6, 2010

बचपन

बचपन है खेल का मेल का बिना मन मैल का
रंजिस से नहीं करते जिन्दगियां बर्बाद,
इनके दिलों नहीं होती गाद।
बचपन को बचपन ही रहने दो बोझ न डालो।
नाजूक कंधे है इनके बोझ ढो न पायेंगे,
ढो भी लिये तो गांठ पड़ जायेंगे।
इनके अन्दर की आशा को न मारो,
ये आसमां छूना चाहते हैं,
इधर-उधर विचरना चाहते हैं।
बारिस की बुंदों में खुद को भिंगोना चाहते हैं।
आगे बढ़ना चाहते हैं, इनके कदम मत रोको।
ये हिमालय की चोटी चढ़ना चाहते हैं।
मुश्किलों में दुश्मनों को पैरों से मार भगाना चाहते हैं।
बचपन को जवानी से पहले मौत के कुएं में मत ढकेलो,
बचपन जवानी की पहली दहलीज है,
इसे मत कुरेदो,
कमल की तरह खिलने दो।
किचड़ है इसका गम नहीं,
खुबसूरती को देखो, गुणों को परखो।
बचपन को बचपन ही रहने दो रवानी मत बनाओ
बचपन है खेल का, मेल का बिना मन मैल का
सविता
बुढ़ापा
बुढ़ापे की लाचारी है बिना पहिये की गाड़ी।
टूट जाता है जवानी का गुमान,
रुठ जाता है सौदर्यता की शान।
रह जाती है जिन्दगी में सिर्फ लाचारी,
जिन्दगी की कमायी पर जो सपने संजोये थे कभी,
कांच की टूकड़ों की तरह बिखर जाती है सारी।
जिन बच्चों को जान से ज्यादा चाहा,
खुशियां देनी चाही, स्पर्श से भी कतराते हैं।
बिना मांगे भीख भी देना नहीं चाहते हैं।
इच्छाओं और अभिलाषाओं पर लग गया है विराम,
बस राम नाम जपना रह गया है काम।
वक्त कांटे नहीं कटता जिन्दगी लम्हों का,
पल-पल लगता है कर्ज चुकाना है कई जन्मों का।
ईश्वर करे बुढ़ापा न आए, आये तो फिर बुढ़ापा ना लाये।
बुढ़ापे की लाचारी है, बिना पहिये की गाड़ी।






सविता