Tuesday, November 30, 2010

शोषण नहीं सम्मान चाहिए

कहा जाता है कि अगर आपकी नाड़ी चल रही है तो जीवित हैं जिस वक्त चलना बंद हुआ। आपके जीवन का अंत हो गया। मगर शब्दों के थोड़े से अंतर से नारी जिसे घर की लक्ष्मी, सुख, समन्नता का द्योत्तक माना जाता है। मर्द जिसे जिसे मां दुर्गा, सरस्वती, काली का रूप् देकर नित्य पूजा अर्चना करते हैं। वही मर्द अपने घर की स्त्रिायों को बेतहाशा पिटते हैं,
एं बाहर वालों को कानों-कान खबर नहीं देते। पेट मे पल रहे उस नन्हीं सी जान को इसलिए मार डलवाते हैं क्योंकि लड़की होती है। चाहे जमाना कितना भी बदल जाये, लड़कियों का वही स्थिति रहेगी जो पहले थी। हम तब तक हम शोषण का शिकार होते रहेंगे। जब तक कि हम खुद अपने बलबूते इस समाज से लड़ने की शक्ति पैदा न कर लें। अक्सर ऐसा देखा गया है कि नारी के शोषण के पीछे एक नारी का ही हाथ होता है। अगर हम एक जुट नहीं रहेंगे, ये समाज हमारा शोषण करता रहेगा। एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका पर तेजाब पफेंक डाला। ऐसी घटना पढ़ने और देखने को आये दिन मिलता रहता है। क्या कभी किसी ने यह प्रश्न किया है कि जिसने तेजाब पफेंका उसने घोर अपराध् किया है उसे प्रेमी क्यों कहा जा रहा है। आज न जाने कितनी स्त्रिायां वेश्यावृति में ढ़केली जा रही है। आखिर वो कौन-सी मजबूरी रहती है जो उन्हें स्त्राी जाति का मर्यादा लांघने पर मजबूर कर देता है। रात नौ बजे के बाद अगर लड़कियां भीड़-भाड़ वाले इलाके में देखी जाती हैं तो समाज उन्हें गलत निगाह से देखता है। क्या नारी का यही दोष है कि वे स्त्राी जाति में जन्म लिये है।
क्या उनकी अपनी कोई सोच नहीं हर चीज के लिए मर्द का सहारा लेना मजबूरी है। या उनकी मदद के बिना कोई मंजिल ही पा सकते। स्त्राी जो सृष्टि को जन्म देने वाली, इसकी कोख ना मिले तो ये शायद ध्रती पर अस्तित्व न बना पाये । तो ये क्यों इस पुरूष प्रधन समाज की गालियां, तिरस्कार, बालात्कार और शोषण का शिकार हो व बनें।

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