Tuesday, November 30, 2010

जवान की अभिलाषा

सविता


माथे पर बांधे कफन तेरे खातिर ये वतन
हर जर्रे-जर्रे पर लिख देंगे वन्दे मातरम
गर मेरी शहादत से संवरता है ये चमन
ऐ मादरे वतन तुझे समर्पित हर जनम
च्ीन हो या पाकिस्तान करे चाहे जितना जतन
छु न पायेंगे तेरे अंश को भी देता हुं तुझे वचन
माना तेरे ही कुछ बेटे तुझे ध्वस्त करने को आतुर हैं।
मलूम नहीं बनाकर मोहरा आतंकी बनाता कोई और है।
वे अभी नादान हैं अंजाम से अंजान हैं,
पल मे खिंच जायेगी जीवन की डोर
हो न पायेगा उनका कभी भी भोर।
देना मां मुझे ऐसा पफौलादी बदन
एक ही प्रहार से थर्रा जाये दुश्मन
माथं पर बांध्े कफन तेरे खातिर ऐ वतन
हर जर्रे-जर्रे पे लिख देंगे वन्देमातरम

शोषण नहीं सम्मान चाहिए

कहा जाता है कि अगर आपकी नाड़ी चल रही है तो जीवित हैं जिस वक्त चलना बंद हुआ। आपके जीवन का अंत हो गया। मगर शब्दों के थोड़े से अंतर से नारी जिसे घर की लक्ष्मी, सुख, समन्नता का द्योत्तक माना जाता है। मर्द जिसे जिसे मां दुर्गा, सरस्वती, काली का रूप् देकर नित्य पूजा अर्चना करते हैं। वही मर्द अपने घर की स्त्रिायों को बेतहाशा पिटते हैं,
एं बाहर वालों को कानों-कान खबर नहीं देते। पेट मे पल रहे उस नन्हीं सी जान को इसलिए मार डलवाते हैं क्योंकि लड़की होती है। चाहे जमाना कितना भी बदल जाये, लड़कियों का वही स्थिति रहेगी जो पहले थी। हम तब तक हम शोषण का शिकार होते रहेंगे। जब तक कि हम खुद अपने बलबूते इस समाज से लड़ने की शक्ति पैदा न कर लें। अक्सर ऐसा देखा गया है कि नारी के शोषण के पीछे एक नारी का ही हाथ होता है। अगर हम एक जुट नहीं रहेंगे, ये समाज हमारा शोषण करता रहेगा। एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका पर तेजाब पफेंक डाला। ऐसी घटना पढ़ने और देखने को आये दिन मिलता रहता है। क्या कभी किसी ने यह प्रश्न किया है कि जिसने तेजाब पफेंका उसने घोर अपराध् किया है उसे प्रेमी क्यों कहा जा रहा है। आज न जाने कितनी स्त्रिायां वेश्यावृति में ढ़केली जा रही है। आखिर वो कौन-सी मजबूरी रहती है जो उन्हें स्त्राी जाति का मर्यादा लांघने पर मजबूर कर देता है। रात नौ बजे के बाद अगर लड़कियां भीड़-भाड़ वाले इलाके में देखी जाती हैं तो समाज उन्हें गलत निगाह से देखता है। क्या नारी का यही दोष है कि वे स्त्राी जाति में जन्म लिये है।
क्या उनकी अपनी कोई सोच नहीं हर चीज के लिए मर्द का सहारा लेना मजबूरी है। या उनकी मदद के बिना कोई मंजिल ही पा सकते। स्त्राी जो सृष्टि को जन्म देने वाली, इसकी कोख ना मिले तो ये शायद ध्रती पर अस्तित्व न बना पाये । तो ये क्यों इस पुरूष प्रधन समाज की गालियां, तिरस्कार, बालात्कार और शोषण का शिकार हो व बनें।

Saturday, November 20, 2010

हाय ये एग्जिट पोल



हाय ये एग्जिट पोल
यह बात सही है कि बिहार विधान सभा चुनाव में लोगों के मन-मस्तिष्क पर नीतीश कुमार का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है। रविवार को लगभग सभी समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों ने नीतीश सरकार को पूर्ण बहुमत मिलने की बात बोल रहे हैं। हालांकि एग्जिट पोल पर रोक लग चुकी है, लेकिन मतदान के अंतिम दिन हुए इस चुनावी सर्वे की सत्यता तराजू पर कितना खरा उतरता है यह तो 24 नवम्बर को आने वाला नतीजा ही बताएगा। नीतीश को ताज मिलेगा या लालू जी का राजनीतिक भविष्य अंधेकार में डूब जाएगा। जहां तक बिहार की जनता की बात है उन्होंने अपना निर्णय ईवीएम में बंद कर दिया है। देश के प्रमुख चैनलों द्वारा एग्जिट पोल क्या चैनलों की विश्वसनियता को बरकरार रखेंगे या ये भी टीआरपी बढ़ाने का फंडा मात्र रह जाएगा। इस तरह का एग्जिट पोल ने न जाने कितने दलों को खजूर पर चढ़ाकर धरती पर ढकेला है। कुछ भी हो इस एग्जिट पोल से जहां राजग गठबंधन को खुश होने को मौका दिया है वहीं लालू पासवान और कांग्रेस को मुंह लटकाने का। लालू जी का कहना है कि रिजल्ट आते ही उड़ जाएगी एग्जिट पोल की हवा। हमारी सरकार पूरी बहुमत के साथ बनने वाली है। अब यह देखना रोचक होगा कि 24 नवम्बर एग्जिट पोल की हवा निकलती है या फिर लालू-पासवान की।

Thursday, November 18, 2010


घोटालों का पर्दाफाश करें अमीर लोग
मुझे याद है जब एक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मनरेगा में हो रहे धांधली को लेकर ई-शक्ति योजना का शुभारंभ किया था और भष्टाचार की बात अवगत होते हुए अपने अधिकारियों को कहा था कि चुनाव में केवल एक साल बच गये है। ऐसा कुछ मत कीजिएगा कि जिससे नाम बदनाम ना हो। आज के समय में जिस प्रकार रोज-दर-रोज नए घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है। उससे ऐसा नहीं है कि ईमानदार व्यक्ति अनभिज्ञ होते हैं। लेकिन उनकी चुप्पी और साथ लेकर चलने की नीति के कारण भष्ट लोग गलती पर गलती चले जाते हैं। जिसका खामियाजा ईमानदार आदमी को तो भुगतना ही पड़ता है साथ ही साथ उसका व्यापक असर पूरे जन मानस पर भी पड़ता है।
आज मूलभूत सुविधा रोटी, कपड़ा, मकान हो या फिर शिक्षा, स्वास्थय और रोजगार का सवाल हो हर जगह बिना पैसा दिये बगैर कोई काम नहीं होता है। जिसके पास पैसा है वह आगे निकल जाता है लेकिन गरीब है दबता और दबता नहीं चला जाता है। कहा जाए तो आज की बढ़ती इच्छाओं में कदाचार घर कर गया है। अगर भष्टाचार को पूरी तरह खत्म करना है तो उन्हीं लोगों को सामने आना पड़ेगा जो ईमानदार और अमीर हैं। इसी तरह की पहल कुछ दिनों पहले रतन टाटा और राहुल बजाज जैसे सशक्त लोगों ने भष्टाचार के खिलाफ जो आवाज उठाया है उसे और बुलंद करने की जरुरत है। ये जिम्मेदारी अब उन्हीं के कंधों पर है क्यों कि उन जैसे लोग पैसे और ओहदा के बल पर अपना काम तो करवा लेते हैं। लेकिन इसमें पिसता है आम आदमी।