Monday, February 3, 2020
Monday, May 6, 2013
Shikayat
कोई शिकवा, कोई शिकायत नहीं
ये जिन्दगी तेरी सच्चाई से
प्यार मिला, पैसा मिला
तुने अच्छी किस्मत भी दी
फिर क्यों चंद लोगों ने नीचा दिखाया
जन्म लिया पिता ने मिठाइयां बाटी
कहा घर में लक्ष्मी आयी
चाची ने फिर क्यों मां को मेरे रंग पर कोसा
उन जैसी चाचियों का साथ न छुटा जिन्दगी भर
बदलते रहे रूप, नादला नीचा दिखाने का रुख
मेरी सफलता पर पिता इतराते
रिजल्ट साको दिखाते
बचपना बीता, जवानी आयी
छुप-छुपकर रोती
गुणो की वाहवाही सब करते
कभी पीठ पीछे तो कभी सामने मजाक उड़ाते
कोई शिकवा, कोई शिकायत नहीं
ये जिन्दगी तेरी सच्चाई से
पर एक कसक रहेगी जिन्दगी भर
ये ऊपर वाले क्यों सुन्दर बनाया नहीं
Thursday, October 18, 2012
हे कपाल कृपालिनी माँ दुर्गा, अब तो करो शंखनाद
तेरे भक्त हो रहे बेसहारा
नहीं सूझ रहा कोई दर दरवाजा
चारो ओर मचा है हाहाकार
बेटे माँ की, पिता पुत्री की लूट रहा अस्मत
भूख और गरीबी हो रही लोगो की किस्मत
देश के तारणहार, बन रहे मौत के सौदागर
तुझसे है बस एक गुहार
हे त्रिनेत्र धारिणी, ले एक बार फिर अवतार
कर महिषासुर रूपी राक्षसों का संहार
तेरे भक्त हो रहे बेसहारा
नहीं सूझ रहा कोई दर दरवाजा
चारो ओर मचा है हाहाकार
बेटे माँ की, पिता पुत्री की लूट रहा अस्मत
भूख और गरीबी हो रही लोगो की किस्मत
देश के तारणहार, बन रहे मौत के सौदागर
तुझसे है बस एक गुहार
हे त्रिनेत्र धारिणी, ले एक बार फिर अवतार
कर महिषासुर रूपी राक्षसों का संहार
हर किसी में बसा है अंश
सुन माँ एक बार फिर दुखभरी पुकार
ख़त्म न हो जाये तेरे बच्चो का संसार
हे अष्टभुजाधारिणी माँ दुर्गा, अब तो करो शंखनाद
सुन माँ एक बार फिर दुखभरी पुकार
ख़त्म न हो जाये तेरे बच्चो का संसार
हे अष्टभुजाधारिणी माँ दुर्गा, अब तो करो शंखनाद
Friday, January 13, 2012
फर्जी नामांकन या महंगाई का असर
2004 के दिसंबर में किसी काम के सिलसिले में गांव जाने को हुआ। उस समय सरकारी स्कूलों में वार्षिक परीक्षा चल रही थी। गांव जैसे ही पहुंची परीक्षा देकर निकल रहे बच्चों की संख्या देखकर मैं अचंभित हो गई। सोच में पड़ गई कि क्या गांव के स्कूल में इतने बच्चे पढ़ते हैं। उसमें से कुछ रिश्ते में भाई-बहन भी लगते थे मैंने पूछा तुम तो शहर में रहते हो तो यहां परीक्षा दे रहे हो क्या तुम सदा के लिए गांव में आ गये हो बच्चों ने जबाव दिया दीदी हम यहां पढ़ते तो नहीं केवल एग्जाम देते हैं। मैं सोच कर हंसने लगी। फिर वहीं कुछ गरीब बच्चे भी मिले जो गरीब थे और वे भी शहर में रहते थे जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा दीदी हम भी सिर्फ परीक्षा ही देने आते हैं। कभी-कभी आकर क्लर्क को कुछ पैसे देते है। वे एटेंडेंस बना देते हैं। फिर मुझसे रहा नहीं गया मैंने पूछा तुम लोग ऐसा क्यों करते हो तो बच्चों मानो जवाबों की झड़ी लगा दी। पहला यहां हमलोग को फ्री में ड्रेस मिल जाता है दूसरा स्कॉलरशिप मिलता रहता है। शहर के प्राइवेट स्कूल में परीक्षा फीस अधिक लगती है। उस समय सरकारी स्कूलों में एडमिशन को ऐसी सोच थी आज तोे सरकारी योजनाओं की बाढ़ सी आ गई है। इन लाभकारी योजना का लाभ उठाना कौन नहीं चाहेगा, बच्चे तो बच्चे शिक्षक भी इस बढ़ती गंगा में हाथ साफ करने में लगे हैं। वे तो बच्चे मर गये उनका भी नाम एटेन्डेेंस रजिस्टर में चढ़ाकर खुद ही लाभी उठा रहे हैं। जिस समय भ्रष्टाचार और महंगाई से लोगों का जीना मुहाल है उस समय सरकारी स्कूल के योजना का लाभ उठाना ही मुनासिव समझते हैं। क्योंकि सरकारी स्कूल में क्या पढ़ाई होती है यह कौन नहीं जानता। अब जाकर सरकार तो अलर्ट हो गई है पर महंगाई से जूझ रही जनता अपनी तिकम अपनाने से बाज आयेगी। इसके लिए सबसे पहले जरूरी है सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था सुधराने की।
Thursday, December 15, 2011
एक गुलाबो को गुलाबो ने लूटा
अपने पति के द्वारा मेरा बलात्कार करवाया वो भी अपने नजरों के सामने ये कहना है पीड़िता गुलाबो देवी का। वह रो-रोकर अपनी अस्मत लूटने की व्यथा कह रही थी। हैवानियत की हद को पार करने वाली कोई और नहीं एक औरत है। मानवता को शर्मसार कर देनेवाली यह घटना है सीतामढ़ी की। जहां की गुलाबो देवी नाम की एक महिला ने अपने ससुराल वालों से इंसाफ की चाह में वहां की जिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष किरण गुप्ता से सुरक्षा और बिखरते वैवाहिक जीवन को बचाने की गुहार लगाने पहुंची क्योंकि पुलिस थाने में जब उसने शिकायत दर्ज करवायी तो पुलिस ने कहा तुम किरण गुप्ता के पास जाओ वो तुम्हारी मदद करेगी। पीड़िता जदयू नैत्री के पास जाती है शुरू-शुरू में उसे इंसाफ दिलाने की दलिलें देती हुई उसके पति से फोन पर बात भी कराती है। इसी बहाने अपने घर के सारे काम भी कराती है। यूहीं गुलाबो कई बार किरण गुप्ता के घर जाती रहती है। पीड़िता के अनुसार जब वह किरण गुप्ता के घर जाती उसके यहां लोगों की भीड़ लगी रहती। प्राप्त जानकारी के अनुसार गुलाबो देवी के ससुराल वाले उसके साथ खूब मारपीट किया करते थे और उसका गर्भपात भी करवाया दिया था। कुछ दिन से पति को भी उससे मिलने नहीं दे रहे थे। इसी से तंग आकर गुलाबो ने मदद की गुहार नेत्री किरण गुप्ता से मदद की गुहार लगायी लेकिन बुधवार को समय ने उसके साथ एक और खेल खेला, उसे क्या पता था कि जिससे मदद की गुहार लगाने गयी है वही उसके इज्जत को तार-तार कर देंगे। जब वह घर में काम कर रही थी उसी समय किरण गुप्ता का पति आ जाता है किरण गुप्ता अपने पति को घर के खिड़की-दरवाजे बंद करने को कहती है और गुलाबो के हाथ-पैर बांधकर अपने पति से बलात्कार करवाया। यह पूरा वाक्या एक औरत के प्रति घिनौनी वारदात को अंजाम देने जैसा है। हमारे समाज में ऐसी लाखों गुलाबो हैं जो अपने ही मां-बहन के द्वारा बाजार में बेरहमी से बेची जा रही है। और सारे कानून मूकदर्शक बनकर देख रही है। मानवता के हत्यारे खुला सांड़ की तरह घुम रहे हैं लेकिन, हर कोई गुलाबो नहीं हो सकती जो अपने ही चिरहरण की कहानी बताने और इंसाफ पाने की हिम्मत रखती है। यह घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है जैसे-जैसे परदा उठेगा कई गड़े मुर्दे बाहर आते जाएंगे और औरत के प्रति हैवानियत की सच्चाई सबके सामने आएगी। यह ज्यादा अहमियत नहीं रखता है कि हैवानित की हद पार वाली सत्ता दल की नेत्री है बल्कि यह अहमियत रखता है वो एक औरत है।
Saturday, October 15, 2011
बस सह रही है और इज्ज़त ढो रही
कोई कैसे सहता है इतना दर्द। केवल अपने माता-पिता की इज्ज़त के लिए। औरतो के किस्मत की ऐ कैसी विद्बंवना है। जिस परिवार के लिए अपनी इच्छाए मारकर आतीं है। वहां उसे जिल्लत की जिन्दगी मिलती है। मै ऐ नहीं कहती सभी औरतो के साथ के साथ होता है। लेकिन भारत जैसे देश में ऐसा होते देख दिल दहल जाता है। यहा स्त्री को तो देवी माना जाता जाता है। फिर ऐसा क्यों है। मेरे घर के एक पिछले दस सालो से अपने पागल पति से रोज़ पिटती है।
केवल इस डर से की यहाँ से वह कहाँ जाएगी। एक तो गरीबी , उसपर उसका सुन्दर होना ही जी का जंजाल है। देखते- देखते दस साल बीत गए है तिन बच्चो की माँ बन गई है। मगर अह कोई नहीं जनता जानवरों की तरह पिट-पिट कर उसके शारीर की क्या स्थिति है। बस सह रही है और इज्ज़त ढो रही
केवल इस डर से की यहाँ से वह कहाँ जाएगी। एक तो गरीबी , उसपर उसका सुन्दर होना ही जी का जंजाल है। देखते- देखते दस साल बीत गए है तिन बच्चो की माँ बन गई है। मगर अह कोई नहीं जनता जानवरों की तरह पिट-पिट कर उसके शारीर की क्या स्थिति है। बस सह रही है और इज्ज़त ढो रही
Saturday, March 5, 2011
साहित्यिक बातों को कितनी जगह
अखबार के पते पर आने वाले पत्रों में कविता, कहानी लेख की संख्या अन्य प्रकार के पत्रों की संख्या से मुकाबले दोगुनी या तीगुनी होती है। कविता कहानी और लेख को रोज इकट्ठा किया जाए तो कोई भी अखबार महीने में एक से दो पुस्तकें जरूर प्रकाशित कर सकता है। अखबारों के व्यावसायकि होने के कारण खबरें पहले से ही संकुचित हो चुकी है इस परिस्थिति कविता, लेख और कहानियां कहां से सांस ले पायेगी। इस देश ने पूरी दुनियां को एक से बढ़कर एक साहित्कार, कथाकार दिये हैं। लेकिन दुख की बात है इस देश के एक प्रतिष्ठित समाजपत्र ने लोकल फीचर डेस्क को खत्म कर दिया है। साहित्य सदा से हमारे समाज का आईना रहा है। इन्हीं कविता, कहानी और नारों के दम पर हमारे महापुरुषों ने अंग्रेजों के नाक में दम किया था। लेकिन आज दिनों-दिन जिसप्रकार महंगाई बढ़ती जा रही है बिना पैसे के एक कदम भी बढ़ना जहां मुश्किल है वहीं कम पैसे में कहानी , कविता और लेख कैसे सांस ले पायेगी। यह बात सच है कि साहित्य के प्रति आज भी लोगों में वही रुचि है जो पहले हुआ करती थी। इस कारण लोगों में इन अखबारों में इनका डिमांड भी अधिक होता है। लेकिन क्या केवल अखबार बिकने से अखबार मालिक अपना व्यवसाय चला पायेंगे। आज एक अच्छे पत्रकार का वेतन 25-30 हजार है ऐसे में अखबार इन साहित्यिक बातों को कितना जगह दे पायेगा। ये आप बेहतर सोच सकते हैं। जो व्यक्ति कविता, लेख और पुस्तक समीक्षा करके अपनी जेब खर्च निकालते हैं।
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